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स प्र॑त्न॒वन्नवी॑य॒साग्ने॑ द्यु॒म्नेन॑ सं॒यता॑। बृ॒हत्त॑तन्थ भा॒नुना॑ ॥२१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa pratnavan navīyasāgne dyumnena saṁyatā | bṛhat tatantha bhānunā ||

पद पाठ

सः। प्र॒त्न॒ऽवत्। नवी॑यसा। अग्ने॑। द्यु॒म्नेन॑। स॒म्ऽयता॑। बृ॒हत्। त॒त॒न्थ॒। भा॒नुना॑ ॥२१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:21 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान तेजस्वी विद्वन् ! जैसे सूर्य्य (भानुना) किरण से (प्रत्नवत्) प्राचीन के सदृश (बृहत्) बड़े को (ततन्थ) विस्तृत करता है, वैसे (सः) वह आप (नवीयसा) अत्यन्त नवीन (संयता) उत्तम प्रकार देते हैं जिससे, उस (द्युम्नेन) धन वा यश से हम लोगों को विस्तृत करो ॥२१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य्य के सदृश यशस्वी होते हैं, वे नवीन-नवीन प्रतिष्ठा को प्राप्त होते हैं ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यथा सूर्य्यो भानुना प्रत्नवद्बृहत्ततन्थ तथा स त्वं नवीयसा संयता द्युम्नेनास्मांस्तनु ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (प्रत्नवत्) प्राचीनवत् (नवीयसा) अतिशयेन नवीनेन (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् (द्युम्नेन) धनेन यशसा वा (संयता) संयच्छन्ति येन तेन (बृहत) महत् (ततन्थ) तनोति (भानुना) किरणेन ॥२१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये सूर्य्यवद्यशस्विनो भवन्ति ते नूतनां प्रतिष्ठां लभन्ते ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे यशस्वी होतात त्यांना नवनवीन प्रतिष्ठा प्राप्त होते. ॥ २१ ॥